यह लेख विशेष रूप से मेडिकल कॉलेज के उस हालिया घटनाक्रम पर आधारित है, जिसमें रेजिडेंट डॉक्टर की आत्महत्या के बाद कॉलेज प्रशासन ने यह निर्णय लिया कि अब रेजिडेंट्स के मानसिक स्वास्थ्य के लिए अभिभावकों से अंडरटेकिंग ली जाएगी — क्योंकि ज़ाहिर है, मानसिक स्वास्थ्य की ज़िम्मेदारी खुद छात्र की और उसके अभिभावकों की है, संस्थान तो बस मेज़बान है।

"रेज़िडेंट का मानसिक स्वास्थ्य: अब माता-पिता की गारंटी!"

अब डॉक्टर बनना सिर्फ़ पढ़ाई, नाइट ड्यूटी और मरीजों की चीखों तक सीमित नहीं रहेगा। अब यदि आप मेडिकल कॉलेज में रेजिडेंट बनना चाहते हैं, तो पहले अपने माता-पिता से मानसिक स्वास्थ्य की अंडरटेकिंग भरवाइए। क्योंकि अगर आपका बच्चा डिप्रेशन में चला जाए, तो कॉलेज कहेगा — "हमें मत देखो, साइन तो आप ही करके आए थे!"

हाल ही में राजस्थान के एक प्रतिष्ठित आयुर्विज्ञान संस्थान में यह ऐतिहासिक कदम उठाया गया है। वजह? एक रेजिडेंट डॉक्टर ने विषाक्त पदार्थ खाकर आत्महत्या कर ली। कारण: उत्पीड़न के आरोप। परिणाम: संस्थान की नैतिक जिम्मेदारी तय करने के बजाय मानसिक स्वास्थ्य बोर्ड, काउंसलिंग सेशन और सबसे महत्वपूर्ण — अभिभावकीय अंडरटेकिंग का जादू-टोना।

और हाँ, फैकल्टी सदस्यों से यह भी अपेक्षा की गई है कि छात्र के व्यवहार में कोई 'मनोरोगी कंपन' महसूस हो, तो तुरंत "सूचित" करें। क्योंकि, जब तक छात्र मानसिक रूप से अस्वस्थ नहीं घोषित हो जाता, तब तक उसे तंग करना संवैधानिक अधिकार है।

यह सब पढ़कर लगता है कि भारत के मेडिकल कॉलेज अब एमबीबीएस, एमडी के साथ-साथ "मनोबल में बीमा" भी दे रहे हैं। जल्द ही शायद कॉलेज में एक नया फॉर्म जारी होगा:

"फॉर्म संख्या 108: हम, अभिभावकगण, यह शपथ लेते हैं कि हमारे पुत्र/पुत्री के डिप्रेशन, बर्नआउट, ट्रॉमा और आत्महत्या के प्रयासों की समस्त जिम्मेदारी हमारी होगी। कॉलेज इसमें दोषी नहीं ठहराया जाएगा, चाहे वो हर सप्ताह 120 घंटे की ड्यूटी करवाए या विभागाध्यक्ष उन्हें जलील करें।"

लेख का सार: जिम्मेदारी से भागना भी एक नीतिगत कला है

इस नीति से क्या स्पष्ट होता है?

  • संस्थान को आत्मनिरीक्षण नहीं करना है, बस गारंटी लेनी है कि "हम तो बेकसूर हैं।"
  • रेज़िडेंट की भावनात्मक पीड़ा एक आँकड़ा है, जिसे 'फॉर्म' से नियंत्रित किया जा सकता है।
  • मानव संसाधन की बजाय, जिम्मेदारी से बचाव ज़रूरी है।

यह नीतिगत कदम न केवल हास्यास्पद है, बल्कि शर्मनाक भी। मानसिक स्वास्थ्य पर काम करने के नाम पर यह बस एक दस्तावेज़ी पलायन है।

निष्कर्षतः:

जहां एक ओर संस्थान को आत्मचिंतन और उत्तरदायित्व उठाने की ज़रूरत थी, वहीं उसने बड़ी चालाकी से सारी ज़िम्मेदारी छात्र और उसके घरवालों पर डाल दी। यह न केवल एक नीतिगत पलायन है, बल्कि उस संवेदनशीलता की कमी भी दर्शाता है, जिसकी अपेक्षा एक स्वास्थ्य शिक्षा संस्थान से की जाती है।