सेक्टर विज़िट: डॉक्टर की स्कूटर यात्रा और सरकार की स्थिरता
राजस्थान में सरकार स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर कितनी गंभीर है, इसका ताजा उदाहरण हमारे मेडिकल ऑफिसर्स की 'फील्ड मूवमेंट एक्सरसाइज' से मिलता है। नहीं नहीं, आप इसे किसी सैन्य अभ्यास जैसा न समझें, यह तो एक सरकारी स्तर पर "मोबिलिटी-रहित मोबिलिटी" का प्रशिक्षण है।
कुछ साल पहले तक डॉक्टर साहब जब भी अपने सेक्टर के सब-सेंटर्स पर जाते थे, तो सरकारी गाड़ी मिलती थी या पेट्रोल का खर्चा मिलता था, और कभी-कभार ड्राइवर भी (अगर वो भी छुट्टी पर न हो तो)। लेकिन बीते एक साल में सरकार ने ऐसा मौन व्रत लिया है कि मोबिलिटी सपोर्ट पर सैंक्शन की स्याही शायद सूख ही गई है। अब डॉक्टर साहब का विज़िट करना, मतलब खुद की गाड़ी, खुद का पेट्रोल, और खुद की हिम्मत!
सोचिए, एक मेडिकल ऑफिसर, जिसके पास पहले से ही ओपीडी, वैक्सीनेशन, कागजी कार्रवाई और "ऊपर से आए फोन कॉल्स" का बोझ है, अब उसे अपने जेब से पैसे खर्च करके दूर-दराज के सब-सेंटर्स तक जाना पड़ता है। यह तो वही बात हुई कि किसी सैनिक को युद्ध में भेज दो, लेकिन बिना हथियार और रसद के! "जाओ, भाई, सेक्टर विजिट करो, लेकिन गाड़ी का तेल तुम्हारी जेब से!"—यह नया नारा लगता है सरकार का।
अब हालत यह है कि डॉक्टर साहब अपनी पुरानी स्कूटी निकालते हैं, जिसकी एक मिरर टंगी हुई है, दूसरा झूल रहा है। हेलमेट सिर पर नहीं, हैंडल पर टंगा होता है क्योंकि वो ज़्यादा इस्तेमाल सीट पर बैठने से होता है—बगल वाले गांव की सड़कें ऐसी हैं कि हेलमेट से ज्यादा "हिम्मत और हड्डियों" की जरूरत है।
एक बार डॉक्टर साहब ने शिकायत की, "सर, मोबिलिटी सपोर्ट नहीं मिल रहा।" जवाब मिला, "आपको तो समाज सेवा करनी है। पेट्रोल से क्या मतलब?"
अब भला डॉक्टर साहब पेट्रोल पंप पर जाकर ये कैसे कहें कि, "भैया, थोड़ी समाज सेवा डाल दो, 1 लीटर टंकी में।"
मोबिलिटी सैंक्शन न होने का असर यह है कि अब कई सब-सेंटर्स डॉक्टर साहब के सपनों में ही चेक होते हैं। एक बार उन्होंने एक गांव के सब-सेंटर को सपने में देखा—"बिल्कुल साफ-सुथरा, रजिस्टर अप-टू-डेट, और स्टाफ मुस्कुराते हुए।" हकीकत में जब गए, तो वहां ताला मिला और मुर्गियां रजिस्टर के ऊपर बैठी थीं।
सरकार की स्थिरता ऐसी है कि एक साल से फाइल वहीं अटकी है, शायद सचिवालय की आलमारी में 'दवा' के साथ 'दुआ' भी करनी पड़ेगी कि वो कभी खुले।
अंत में यही कह सकते हैं कि हमारे डॉक्टर साहब अब सिर्फ मरीज ही नहीं, अपनी स्कूटी के भी फिजिशियन बन गए हैं। पहले गांव के बच्चों को दवा देते थे, अब अपने वाहन को "कुल्फी न हो जाए" इस डर से खुद मसाज देते हैं।
सरकार चाहे जो कहे, मेडिकल ऑफिसर्स को इस युग में "मोबाइल स्वास्थ्य सेवा" का असली अर्थ समझ में आ गया है—जहां डॉक्टर, गाड़ी, पेट्रोल, और आत्मबल—all-in-one पैकेज हैं।
जय सरकारी संवेदनशीलता! जय स्कूटर चिकित्सा अभियान!