"डॉक्टर्स के संगठन: नींद में सोता स्वास्थ्य सेवाओं का शेर"
राजस्थान प्रशासनिक सेवा (RAS) के अफसरों का संगठन हाल ही में अपनी लंबित माँगों को लेकर मुख्यमंत्री जी से मिलने पहुँचा। तस्वीरें मीडिया में छपीं, चेहरे आत्मविश्वास से भरे थे, और मांगपत्र हाथ में था — ऐसा लग रहा था जैसे अपने हक के लिए खड़ा हुआ एक ज़िम्मेदार संगठन अपनी भूमिका निभा रहा हो।
अब दूसरी तरफ़ देखते हैं — हमारे महान डॉक्टर्स संगठन। इनकी संख्या तो इतनी है कि अगर सभी संगठनों की लिस्ट बनाई जाए, तो MBBS से PG तक के पर्चे कम पड़ जाएँ। हर ग्रुप का संगठन (ग्रुप-1 & ग्रुप-2), हर स्पेशलिटी का संगठन, हर जिले का संगठन, हर हॉस्पिटल का संगठन, और हर संगठन के अंदर गुटबाज़ी में बने उप-संगठन। लेकिन सबका हाल एक जैसा — चुप्पी साधे बैठे हैं।
RAS संगठन मुख्यमंत्री से मिल रहा है, और इधर डॉक्टर्स संगठन सोशल मीडिया पर "जल्दी समाधान हो" , "कैडर बनना चाहिए" टाइप के पोस्ट तक ही सीमित हैं। कुछ संगठन तो इतने निष्क्रिय हो चुके हैं, कि शायद उन्हें पता भी नहीं कि उनकी लंबित माँगें कौन-कौन सी हैं। ऐसा लगता है जैसे माँगपत्र को ICU में रखा गया है और डॉक्टर उसका इलाज करने की बजाय छुट्टी पर चले गए हैं।
डॉक्टर्स के कुछ संगठन तो इतने 'डिसिप्लिन' में हैं कि सरकार को भी भ्रम हो गया है — "क्या वाकई कोई माँग बाकी है?"
मसला ये नहीं कि डॉक्टर्स की माँगें नहीं हैं — माँगें बहुत हैं, असल समस्याएँ भी हैं, और उन्हें सुलझाना ज़रूरी भी है। मसला इस बात का है कि जिन लोगों ने जनता की जान बचाने की शपथ ली, वे खुद अपनी आवाज़ को वेंटिलेटर पर छोड़ बैठे हैं।
अब समय है कि डॉक्टर्स संगठन भी RAS की तरह 'एक संगठन, एक स्वर' में बोलना सीखें। वरना सरकार तो समझेगी ही — "जो सोया है, वह संतुष्ट है!"