डॉक्टर हटाओ, फाइल चलाओ!
हर सुबह जब अख़बार के पन्ने पलटते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे चिकित्सा विभाग अब इलाज का नहीं, इल्ज़ामों का विभाग बन चुका है। खबरें कुछ इस तरह की होती हैं —
• "डॉक्टरों की लापरवाही से मरीज की मौत!"
• "अस्पताल पर ताला, बरामदे में प्रसव!"
यानी अगर अस्पताल में खिड़की की जाली भी टूटी मिल जाए, तो उसकी सीधी जिम्मेदारी सीधे विभाग के प्रमुख पर डाल दी जाती है। और हां, ये मत पूछिए कि बाकी विभाग क्या कर रहे हैं! क्योंकि बाकी विभागों पर सवाल पूछना पत्रकारिता नहीं, 'राजनीतिक असभ्यता' मानी जाती है।
चिकित्सा विभाग इन दिनों सरकार, मीडिया और अफसरशाही की सॉफ्ट टार्गेट बन चुका है। ऐसा लगता है जैसे इस विभाग को बदनाम करने की कोई गुप्त डिग्री चल रही हो —
आइए, अब इस पूरे खेल को समझते हैं।
स्टेथोस्कोप की जगह स्टेपलर
जिस डॉक्टर ने 10-12 साल की मेहनत से MBBS, MS या MD की डिग्री पाई है, जिसे दिन-रात मरीजों की जान बचाने का अभ्यास है, वह आज पद से हटाया जा रहा है। उसकी जगह बैठाए जा रहे हैं IAS और RAS अफसर — जिनकी योग्यता है:
• एक मीटिंग से दूसरी मीटिंग में कूदना
• "नोट शीट" पर गंभीर मुंह बनाकर दस्तखत करना
• और अगर ज़रूरत पड़े तो "बजट" के नाम पर हाजिरी लगाना
अब सवाल ये उठता है कि क्या ऑपरेशन थिएटर में स्केल और कम्पास से पेट काटा जाएगा?
या मरीज की तकलीफ सुनकर अफसर साहब कहेंगे:
"इस पर हम एक कमेटी बनाएंगे, रिपोर्ट तीन महीने में आएगी!"
डॉक्टर बनाम अफसर: असली जंग
ये तो तय है कि हर घोटाले के लिए डॉक्टर को ही कटघरे में खड़ा किया जाएगा। अगर कोई इंजेक्शन खराब निकला, तो डॉक्टर दोषी। अगर दवाई गोदाम में एक्सपायरी हो गई, तो डॉक्टर दोषी। और अगर अफसर ने समय पर टेंडर पास नहीं किया, तो डॉक्टर फिर भी दोषी — क्योंकि अफसर तो 'प्रशासन' है, और डॉक्टर सिर्फ एक 'कर्मचारी'।
शायद इसीलिए आज हर मेडिकल कॉलेज, अस्पताल और स्वास्थ्य संस्था में धीरे-धीरे डॉक्टरों की जगह अफसरशाही को लाया जा रहा है। अफवाह है कि भविष्य में एक नया पद निकलेगा —
इसका पाठ्यक्रम होगा:
• कैसे डॉक्टरों को खामोश रखा जाए
• कैसे प्रेस कॉन्फ्रेंस में लिपि और लुक बनाए रखा जाए
• और कैसे घोटाले की खबर को 'फंड में देरी' में बदला जाए
खबरें किसकी, मकसद किसका?
अब अगर कोई पूछे कि बाकी विभागों की खबरें क्यों नहीं छपतीं?
तो जवाब मिलेगा —
"वो तो सिस्टम का हिस्सा हैं!"
मतलब, अगर बिजली विभाग में बिलिंग गड़बड़ी हो जाए, तो वह 'तकनीकी त्रुटि' है।
अगर सड़क विभाग की नई सड़क दो महीने में टूट जाए, तो 'मानसून की मार' है।
लेकिन अगर एक डॉक्टर छुट्टी पर चला गया, तो वह 'जनता के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़' है।
कहीं ऐसा तो नहीं कि ये खबरें और घोटालों का हल्ला केवल इसलिए मचाया जा रहा है ताकि जनता का ध्यान भटका कर चिकित्सा विभाग पर अफसरशाही का कब्जा जमा दिया जाए? ताकि इलाज के बजाय 'नियमावली' लागू हो जाए? और मरीज को दवा की पर्ची की जगह 'RTI की कॉपी' थमा दी जाए?
और अंत में...
कल्पना कीजिए कि आप एक सरकारी अस्पताल में हैं। आपकी तबीयत बिगड़ गई है। आप स्ट्रेचर पर लेटे हुए हैं और सामने अफसर साहब टाई पहनकर आए हैं।
आप बोले: "सर, दर्द बहुत है।"
वो बोले: "हमने इस पर एक बैठक बुलाई है, टेंडर प्रक्रिया में हैं। तब तक कृपया धैर्य रखें और फीडबैक फॉर्म भरें।"
यही भविष्य है अगर चिकित्सा विभाग को डॉक्टरों से छीनकर अफसरों को सौंप दिया गया।
तो, अगली बार जब आप स्वस्थ हों — अखबार खोलिए और सोचिए:
क्या डॉक्टर ही दोषी है?
या उसे दोषी दिखाना किसी और खेल का हिस्सा है?
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