"डीपीसी: कुछ अफसरों का हक़, कुछ का सपना — चिकित्सा अधिकारियों की फाइलें अभी गहन चिकित्सा कक्ष में हैं!"
जयपुर से एक ताज़ा समाचार आया है — आरएएस और आरपीएस अधिकारियों की डीपीसी की तारीखें तय हो गई हैं। जी हाँ, उनकी फाइलें तेज़ी से दिल्ली की ओर दौड़ रही हैं जैसे स्पेशल एक्सप्रेस ट्रेन हो। कोई देरी नहीं, कोई अड़चन नहीं। प्रमोशन के सारे रास्ते साफ़ हैं। दिल्ली दरबार तक पहुंचने की प्रक्रिया एकदम "फास्ट ट्रैक" पर है।
लेकिन वहीं दूसरी ओर, राज्य के चिकित्सा अधिकारी, जिनकी सेवा को पूरा समाज नमन करता है, उनकी फाइलें शायद सरकारी फाइलों के मुक्ति-मोक्ष प्रकरण में उलझी हुई हैं। वर्षों से प्रमोशन की राह देख रहे इन अधिकारियों के लिए डीपीसी सिर्फ एक सपना बनकर रह गया है — एक ऐसा सपना जो हर साल नए आश्वासनों से सजाया जाता है और हर बार 'अभी कागज़ी कार्रवाई चल रही है' जैसे वाक्य से ढांप दिया जाता है।
चिकित्सा अधिकारियों की प्रमोशन प्रक्रिया का हाल कुछ यूं है:
- पहले फाइल चिकित्सा विभाग में घूमती है,
- फिर वह डीओपी (कार्मिक विभाग) के गलियारे में गुम हो जाती है,
- फिर आती है मुख्य सचिवालय से अप्रूवल की बारी,
- और अंततः... डीपीसी की बात होती है, जो वर्षों बाद भी 'विचाराधीन' ही रहती है।
उधर आरएएस और आरपीएस अधिकारी, जो पहले से सुविधाओं में सम्पन्न हैं, उनका प्रमोशन तो टाइम से टाइम पर हो ही जाता है। उनकी डीपीसी की तारीखें तो अख़बारों में भी छपती हैं, अफसरों के नामों के साथ पूरी लिस्ट तैयार रहती है। और चिकित्सा अधिकारी? उनका नाम किसी सूची में नहीं, सिर्फ इंतजार की लंबी फेहरिस्त में होता है।
"कोरोना काल हो या डेंगू का प्रकोप, चिकित्सा अधिकारी ड्यूटी पर पहले और डीपीसी में सबसे पीछे।"
क्या डीपीसी भी अब वीआईपी कल्चर में बंट गई है?
ऐसा लगता है कि प्रमोशन भी अब अफसरशाही के पदक्रम और प्रोफेशनल 'ग्लैमर' के हिसाब से तय होता है। जो जितना मंत्रालय के करीब, वो उतना डीपीसी के करीब। डॉक्टर साहब तो बस मरीजों के करीब रहते हैं — उन्हें मंत्रालयों में चक्कर लगाने का वक़्त ही नहीं मिलता।
अब समय आ गया है कि सरकार यह सवाल खुद से पूछे — क्या चिकित्सा अधिकारियों की मेहनत और सेवा भाव का सम्मान सिर्फ तालियों और थालियों से ही किया जाएगा? या फिर प्रमोशन की फाइलें भी उतनी ही तेजी से चलाई जाएंगी जितनी आरएएस और आरपीएस की चलती हैं?
अंत में एक विनम्र अपील...
"आरएएस-आरपीएस की डीपीसी देख डॉक्टर बोले —
'हम भी सरकारी हैं, बस सिस्टम को हमारी याद नहीं आती।
मरीज की जान बचाने में नाम है हमारा,
मगर प्रमोशन की दौड़ में हमारी गिनती नहीं होती।'"