"साहब के शौचालय निरीक्षण"

"साहब के शौचालय निरीक्षण"

और 'दर्शनीय स्थल'

जब कोई अफसर साहब—चाहे वो SDM हों, ADM हों या फिर खुद DM—किसी अस्पताल का "औचक निरीक्षण" करने निकलते हैं, तो लगता है जैसे किसी सैन्य ऑपरेशन की तैयारी हो रही हो। कैमरे चमकते हैं, अखबारों की हेडलाइंस सजने लगती हैं, और अस्पताल स्टाफ़ के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आती हैं—कहीं साहब को शौचालय में टॉयलेट रोल नहीं मिला तो?

लेकिन आइए, अब ज़रा इन "जाँच अधिकारियों" को खुद उनके ही शौचालयों की ओर ले चलें—पंचायत भवनों, तहसील कार्यालयों और उपखण्ड कार्यालयों के टॉयलेटों की ओर।

पहली तस्वीर: ये जो दिख रहा है वो कोई प्राचीन खंडहर नहीं, बल्कि आपकी तहसील का शौचालय है। हाँ, वहीं जहाँ आम जनता अपना दुखड़ा लेकर आती है और बदले में यह सड़ा पड़ा नज़ारा पाती है—दीवारें ऐसी कि मानो अजंता की गुफाएँ हों, और फर्श पर कचरे का कालीन बिछा हो। टॉयलेट पॉट में पड़े कुरकुरे के पैकेट से तो लगता है मानो किसी ने वहाँ पिकनिक मना ली हो।

दूसरी तस्वीर: तो और भी ऐतिहासिक है—एक यूरिनल, जो खुद यूरिन से शर्मिंदा है। ऊपर से एक 'सज्जन' नल टोंटी लगी है, जो वर्षों से सूखी है। जिसे देखकर ये समझ नहीं आता कि इससे हाथ धोने है या इसे चलाकर मूत्र बहाना है? आसपास की दीवारें इतनी हरी हैं कि अगर ज़रा और धैर्य रखें तो शायद मटर की बेलें भी उग आएँ।

तहसील शौचालय

"निरीक्षणकर्ताओं के शौचालय: एक दृश्य अध्ययन"

अब सवाल उठता है कि जब अस्पताल के साफ़-सुथरे टॉयलेट्स पर अधिकारियों की भौंहें तन जाती हैं, तो पंचायतों, तहसीलों और उपखण्ड कार्यालयों के इन टॉयलेटों को देखकर इनकी अंतरात्मा क्यों नहीं जागती? क्या वहाँ के टॉयलेट निरीक्षण की जिम्मेदारी 'अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र' की है?

सच कहें तो ये निरीक्षण नहीं, एक 'पब्लिक रिलेशन ड्रामा' होता है। अधिकारियों के कैमरे के सामने खिंचवाए गए फोटो, पत्रकारों की एकतरफा रिपोर्टिंग और फिर उस पर साहब की "कड़ी फटकार"—जैसे फिल्मी विलेन डायलॉग बोल रहा हो, "अगर अगली बार गंदगी मिली तो...!"

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पर साहब, अगली बार जनता भी पूछेगी—
"आपकी तहसील का टॉयलेट कब देखा आपने आखिरी बार?"
या फिर कहीं आप भी वहीं कुरकुरे वाला पैकेट छोड़ आए थे?

निष्कर्ष यही है—
"जो लोग दूसरों के घर की धूल झाड़ने निकलते हैं, पहले अपने आंगन की गंदगी साफ़ कर लें।"

वरना अगली सुर्खी यही होगी—
"SDM साहब निरीक्षण के दौरान खुद ही अपने टॉयलेट में फिसल गए!"

लेखक: एक परेशान नागरिक,
जो अब टॉयलेट के बजाय जंगल जाना बेहतर समझता है।

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