"डॉक्टर मर जाए तो कोई बात नहीं… बस विचलित मत हो!"



"डॉक्टर मर जाए तो कोई बात नहीं… बस विचलित मत हो।"
लेखक:- इन जैसे वरिष्ठों के हिस्से की एक्स्ट्रा ड्यूटी के बीच झपकी लेता एक "असंवेदनशील युवा चिकित्सक"

"मन आहत होता है" — इस वाक्य से शुरू होने वाला एक महानुभाव का लेख पढ़ा, जो शायद AC ऑफिस में बैठकर लिखा गया था, या फिर मेडिकल कॉलेज के किसी आरामदायक प्रोफेसर-कक्ष से।

वरिष्ठ लेखक महोदय पूछते हैं –
"दिल नहीं पसीजा इनका, तड़पते मरीज़ों को देख?"

जी नहीं, पसीजा था, लेकिन जब एक ही डॉक्टर 100 मरीज़ों को देख रहा हो, जब उसको खाना-पीना नसीब न हो, उसकी रातें नींद के बिना गुजरती हों, और आप जैसे ऊँचे पदों पर बैठे वरिष्ठों के कुप्रबंधन से युवा चिकित्सक की मौत के बाद तो पसीजने की प्रक्रिया धीरे-धीरे आदत में बदल जाती है।

कभी आपने उस डॉक्टर से पूछा है जो 72 घंटे की ड्यूटी के बाद मानसिक दबाव के कारण मरा, या फिर आपके कुप्रबंधन के कारण करंट लगने से मरा?

नहीं, क्योंकि आपको चिंता है कि उसके साथी विचलित क्यों हो गए!
क्योंकि संवेदनशील डॉक्टर को मर जाना चाहिए – बस भावुक नहीं होना चाहिए!

हमें मरने दो, पर रोने नहीं दो।

सच तो ये है कि सिस्टम मर चुका है, और अब उसकी चिता पर डॉक्टरों की संवेदनशीलता की बली दी जा रही है।

वरिष्ठ जन कहते हैं –
"तुम उठो! तुम सेवा के लिए बने हो!"

माफ कीजिए, सर। हम सेवा के लिए बने हैं, बलि के बकरे बनने के लिए नहीं।
हम मरीजों के लिए हैं, लेकिन अपने जीवन के मूल्य पर नहीं।

क्या डॉक्टर अब रोबोट है?

आज एक युवा डॉक्टर सुबह 6 बजे ICU में है, 12 बजे OT में, और शाम को कोर्ट केस में — क्योंकि मरीज का कोई परिजन कहता है "डॉक्टर ने जान ले ली।"

और आप कहते हैं –
"तुम विचलित मत होओ।"

मतलब हम पर मुकदमे चलें, गालियाँ खाएँ, मारें भी जाएँ – लेकिन डॉक्टर मुस्कुराए।
वाह!
हमें इंसान नहीं, मेडिकल भावुकता की कठपुतली होना चाहिए?

आपका आदर्श डॉक्टर कौन?

आपका आदर्श डॉक्टर वो है –

  • जो कभी थके नहीं,
  • जो घर पर माँ-बाप की चिंता करे बिना मरीज की सेवा करे,
  • जिसे सैलरी में कटौती मंज़ूर हो,
  • जो छुट्टी न माँगे,
  • और जिनका साथी आपकी वजह से दम तोड़ दे — लेकिन वो विरोध प्रदर्शन न करे।
वाह, क्या आदर्शवाद है।
क्या आप खुद ऐसा बन सकते हैं?
नहीं न?

आपका "मन आहत" है, लेकिन हमारा जीवन आहत है।

आप "मन आहत" कहकर लेख लिखते हैं,
हम "मन आहत" होकर खुद को खो देते हैं।

कभी बात कीजिए उन डॉक्टर्स से जिनको आजकल बार-बार अपने ही साथियों की मौत देखनी पड़ रही है,
जो रात भर वार्ड में अकेले होता है जब हर नर्स और स्टाफ छुट्टी पर होता है।
जो खुद बुखार में तपते हुए मरीजों को IV लगाता है।
जो कोविड में पीपीई किट में दम तोड़ता है — और फिर आप कहते हैं —

"तुम विचलित क्यों हो?"
एक असंवेदनशील समाज में डॉक्टर का क्या स्थान है?

जिस देश में डॉक्टर को मारने वाले को ज़मानत मिल जाती है,
जहाँ मेडिकल कॉलेजों में सिखाया जाता है – "पेशेंट फर्स्ट", लेकिन
सिस्टम कहता है – "डॉक्टर लास्ट"
वहाँ अगर कोई डॉक्टर संवेदनशील नहीं रहा,
तो उसका दोषी वो नहीं — बल्कि ये समाज है, और आप जैसे डॉक्टर्स के भेष में छिपे जयचन्द है।

अंत में:

डॉक्टर अगर आज संवेदनहीन दिखता है,
तो शायद इसलिए क्योंकि उसकी संवेदनशीलता को
आपने ही शवगृह में छोड़ दिया है।

हमें संवेदनशीलता की सीख मत दीजिए,
हमें सुरक्षा, सम्मान और समर्थन दीजिए।
"मन और अधिक आहत होता है, जब मरे हुए डॉक्टर को देखकर भी समाज कहता है – 'ये तो संवेदनशील नहीं था।'"
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