"अब डॉक्टर नहीं, GPS से जुड़ा सरकारी यंत्र बनो!"



अब डॉक्टर नहीं, GPS से जुड़ा सरकारी यंत्र बनो!

स्वास्थ्य विभाग, हरियाणा ने एक अत्यंत 'क्रांतिकारी' कदम उठाया है। अब डॉक्टर, सिविल सर्जन, चिकित्सा अधिकारी, और यहां तक कि चप्पल घसीटते क्लर्क भी तब तक "सरकारी" नहीं माने जाएंगे जब तक वे Geo-fencing आधारित Attendance Management System App पर अपनी उपस्थिति दर्ज न करें।

मतलब अब मरीज देखो या न देखो, GPS तुम्हारी लोकेशन देखकर बताएगा कि तुम 'कर्तव्यनिष्ठ' हो या 'कामचोर'

जबरदस्ती कुर्सी पर बिठाने का नया युग

क्या ऐसा करके ये लोग जबरदस्ती काम करवा लेंगे?
शायद हां। क्योंकि अब सरकार कहती है — "काम की चिंता मत करो, पहले GPS पर टिक जाओ।"

काम का GPS से क्या नाता?

काम कोई भावना से होता है, समर्पण से होता है। लेकिन अब सरकार मानती है कि काम GPS सिग्नल से होता है।
सरकार कहती है:

"काम मत करो, बस ऐप पर उपस्थित रहो। चाहें मरीज लाइन में तड़पता रहे, पर Geo-fence पूरा होना चाहिए।"

सरकारी तंत्र का हाल ऐसा हो गया है कि कुर्सी पर बैठने की बजाय अगर GPS पर बैठ जाएं तो पदोन्नति भी मिल सकती है।

ये बीमारी फैल सकती है

सबसे बड़ी चिंता तो ये है कि यह बीमारी अब हरियाणा से होते हुए पूरे भारत में फैल सकती है।

जैसे पहले बीपीएल कार्ड की मुसीबत हर राज्य में आई, फिर e-SHRAM, फिर फॉर्म भरने वाले न जाने कितने 'डिजिटल यंत्र' आए — अब ये Geo-fencing Attendance वायरस तैयार है पूरे भारत को पकड़ने के लिए।

निष्कर्षतः

ये पत्र नहीं है, यह सरकार द्वारा कर्मचारियों के आत्म-सम्मान और विवेक पर एक लोकेशन आधारित हमला है।
काम तब होता है जब जिम्मेदारी दिल से निभाई जाए, ना कि जबरी ऐप से उपस्थिति दर्ज कराई जाए।

"GPS की गुलामी से सावधान रहो, वरना एक दिन सांस लेने के लिए भी एप्लीकेशन भरनी पड़ेगी।"
– व्यंग्यकार
सरकारी तंत्र के भूगोल से त्रस्त डॉक्टर